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 "वसुधैव कुटुम्बकम"
(Whole world is a family)

सनातन धर्म, संस्कृति और परम्परा "वसुधैव कुटुम्बकम" पर आधारित है. हजारों वर्ष पुरानी इस संस्कृति और परम्परा से जुड़े लोगों ने पूरी मानव जाति के कल्याण के लिए ही अपना जीवन जीया. लेकिन, पिछले कुछ दशकों में जो बदलाव आये हैं, वो ना तो सनातनी लोगों के लिए और ना ही पूरी दुनिया के लिए कल्याणकारी है. @तारकेश्वर मिश्र 
उदाहरण के लिए - 1. चोटियां छोड़ी 2. टोपी, पगडी छोड़ी 3. तिलक, चंदन छोड़ा 4. कुर्ता छोड़ा, धोती छोड़ी 5. यज्ञोपवीत छोड़ा 6. संध्या वंदन छोड़ा 7. रामायण-गीता का पाठ छोड़ा 8. महिलाओं, लडकियों ने साड़ी छोड़ी, बिछिया छोड़े, चूड़ी छोड़ी, दुपट्टा, चुनरी छोड़ी, मांग का सिंदूर और बिन्दी छोड़ी 9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (आया पालती है) 10. संस्कृत छोड़ी, हिन्दी छोड़ी 11. मन्त्र-श्लोक छोड़े, लोरी छोड़ी 12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े 13. सुबह शाम मिलने पर राम राम छोड़ी 14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छूना छोड़े 15. घर परिवार छोड़े (अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार छोड़े) 16. नियमित मंदिर जाना छोड़ा. और भी बहुत कुछ. अब नतीजा सामने है, सबकुछ होते हुए भी मन की शांति नहीं है और यह शांति जहाँ मिलेगी, उससे बहुत दूर निकल चुके हैं. सुबह का भूला अगर शाम तक घर लौट आता है तो उसे भुलाया नहीं मानते, तो भलाई इसी में है - आ अब लौट चलें, खुद को जानें, अपने अतीत को पहचानें. @तारकेश्वर मिश्र